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सुषमा स्वराज की गलती

बस, यूं ही...
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बड़े-बूढ़े ठीक ही कह गए हैं नेकी कर दरिया में डाल। सुषमा स्वराज को पता होता कि ललित मोदी की मदद करना इतना भारी पड़ेगा तो उन्होंने नेकी दरिया में नहीं लंदन की टेम्स नदी में बहाई होती। इंसानियत के नाते सुषमा ने ललित मोदी को लंदन से बाहर क्या निकाला सात समंदर पार भारत में हाय-तौबा मच गई। अब विपक्ष कह रहा है इस्तीफा दो। सुषमा तो समझ ही नहीं पा रहीं कि आखिर इतना बड़ा क्या अपराध कर दिया। बाल-बच्चे वाले शक्स की मदद करना इतना बड़ा गुनाह कैसे हो सकता है और जो छोटी-मोटी गलती लग भी रही हो तो सज़ा भी छोटी-मोटी ही होनी चाहिए। सीधा इस्तीफा?  पूरी क्लास के सामने चेयर पर खड़े होने की तर्ज पर संसद में कुर्सी पर खड़ा किया जा सकता है या फिर कान पकड़कर सॉरी बोलना भी एक ऑप्शन था। ज़रा ज़रा सी बात के लिए इस्तीफा क्यों ?
वैसे परंपरानुसार हम वसुधैव कुटुंबकम की विचारधारा रखते हैं। सीमा या परिधी में बांटकर विश्व को हमने कभी देखा नहीं। भले ही चीन आंखें तरेरे हम तो हिंदी-चीनी भाई-भाई हैं। पाकिस्तान के केस में तो हमारी सरकारें रहीम दास जी के दोहे ‘क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात’ को वर्षों से फॉलो करती रही हैं। फिर सुषमा ने मोदी की मदद लंदन से बाहर निकलने में की है ना कि भारत से बाहर निकलने में। अब एक देश से निकलकर दूसरे देश जाने में कैसी आफत। वो लंदन रहें या पुर्तगाल हमारे लिए तो बात एक ही बैठती है ना?
हालांकि इस प्रकरण के बाद सुषमा को भी कुछ विभीषण भी मिल गए। आखिर अपने पराए का पता मुसीबत के समय ही तो चलता है। कल तक जिस कांग्रेस को सुषमा ‘रावन’ मानती थीं उसी में उन्हें ‘जीवन’ मिला। दिग्विजय सिंह ने सुषमा के जले पर बड़े प्यार से नमक का मरहम लगाया है। कहा है, अंतर्रात्मा की आवाज़ पर सुषमा इस्तीफा दें (अंतर्रात्मा मौन हो जाए तो क्या करना है ये नहीं बताया दिग्गी ने)। साथ ही ये भी जोड़ दिया कि सुषमा बीजेपी की अंदरूनी कलह से पीड़ित हैं। अब दिग्गी राजा को कौन समझाए कि यहां पीड़ित सुषमा नहीं अमित शाह हैं। सही मौका था, पुराना हिसाब-किताब चुकता करने का लेकिन दिल के अरमां आंसुओं में बह गए। कलेजे पर पत्थर रखकर सुषमा की तरफदारी करनी पड़ रही है।
उधर सुषमा को लेकर लालू की हमदर्दी भी सामने आ गई। कहने लगे पीएम मोदी सुषमा को पसंद नहीं करते थे यही वजह है कि सुषमा राजनीति का शिकार हुई हैं। जानकारों का मानना है कि लालू सुषमा की पिक्चर के बीच में अपनी अपकमिंग फिल्म का ट्रेलर दिखा रहे हैं। जैसे मोदी सुषमा को पसंद नहीं करते थे ठीक वैसे ही नितीष भी लालू को पसंद नहीं करते थे। कल दिन अगर लालू भी राजनीति का शिकार हों तो जनता स्वतः समझ ले कि झोल कहां है। संभव है उन्होंने अपने अमित शाह की तलाश भी कर ली हो।
हालांकि आस्तीन के सांप को खोजना पहले ज़रूरी है।

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