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बोलना ही राजनीति है !

बस, यूं ही...
बस, यूं ही...
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यहां बोलो, वहां बोलो, जहां-तहां बोलो क्योंकि बोलना ही राजनीति है। खुद बोलो और दूसरों की बोलती बंद करो। इस काम में जो जितना माहिर, वो उतना बड़ा नेता। अमित शाह ने बोलते बोलते ही मोदी को ओबीसी बता दिया। कहा देश को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री देने वाली हम अकेली पार्टी हैं। अमित शाह का ये कहना और तमाम पार्टियों की बोलती बंद। लालू प्रसाद का तो हाल बुरा है। बोलना तो दूर वो इस मामले पर रिऐक्ट कैसे करें यही नहीं समझ पा रहे।

सुना है इस खबर के बाद कांग्रेस मुख्यालय में हड़कंप मच गया था। कांग्रेसी ये ढूंढने में लग गए कि कौन-कौन सी कौम-धर्म और जाति का पहला प्रधानमंत्री उन्होंने देश को अब तक दिया है। तभी किसी सयाने की पीछे से आवाज़ आई कि दोस्तों देश को पहला प्रधानमंत्री ही हमने दिया था। हम शुरुआत ना करते तो ये परंपरा कहां से आती।

मतलब बोलना तुरंत और जवाब इंस्टैंट आना चाहिए लेकिन फायदा तभी है जब उसके लिए बोलो जो खुद बोल सकता हो। मसलन हिंदु, मुस्लिम, जाट, सिक्ख, ब्राह्मण, ओबीसी वगैरह वगैरह। अब आप ही बताइए…..विकास बोल सकता है क्या ? बिजली-पानी सड़क के मुंह हैं क्या ? अगर इन्हें बोलना आता तो क्या हमारे नेता इनकी आवाज़ नहीं उठाते ? किसे पता तब जुमला आता कि देश को विकास देने वाला पहला प्रधानमंत्री हमारी पार्टी ने दिया।

‘हम यादवों की पार्टी हैं’ की तर्ज पर तब पार्टियां कहतीं हम बिजलियों की पार्टी हैं। हम आएंगे तो बिजली के दिन बहुर जाएंगे। दिन में 2-4 घंटे बमुश्किल दिखने वाली बिजली रातों को भी जला करेगी। बिजली रानी अगर अपना राज चाहिए, अपना आधिपत्य चाहिए तो हमें वोट दो। तब सारी बिजलियां इकट्ठा हो उसी पार्टी को वोट देतीं।

पानी को अपने दुर्दिन दूर करने होते तो वो पानी वाले कौम को वोट देती। आखिर साफ सुथरे पीने के पानी को जब सीवर का गंदा जल आलिंगन करता है तो उसे भी तो कष्ट होता होगा। इस ज़लालत से मुक्ति के लिए वो अपनी ही कौन के नेता को चुनती ना ?  अरे भाई, पानी ही पानी के दर्द को बेहतर समझ सकता है।

मेरी राय है कि देश के तमाम साइंटिस्ट मिलकर बिजली-पानी-सड़क-स्कूल-अस्पताल वगैरह के मुंह इजात करने का काम करें। ये बोल सकेंगे तो हमारे नेता बोल सकेंगे। तब कुर्मी-मुस्लिम-जाट-दलितों की पार्टी नहीं बल्कि बीजली-पानी-सड़क की सरकार होगी। जो पार्टी जीतेगी कम से कम उस कौम की दशा सुधरेगी और ऊपर वाले की दया से कहीं सबको एक-एक कर मौका मिल गया तो आने वाले 67 वर्षों में देश का विकास तय समझिए।

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